मौत आ जाए मगर ………
गुफ़्तगू हो शायरी में शायरी में गम न हो
हो इनायत बस खुदा की आँख कोई नम न हो
हो मुहब्बत इस फ़िजा में आसमां हो ख़ुशनुमा
दे सुनाई मुस्कुराहट दर्द का मातम न हो
आरजू का है इजाफ़ा कम न होती प्यास है
पेट भर जाए गरीबी भूक का आलम न हो
सोच लो की भागना है कब तलक यूँ दर्द से
चाह में अच्छे दिनों के हादसे कायम न हो
खूब देखे है नजारे मौत से लिपटे हुए
मौत आ जाए मगर वो जिंदगी से कम न हो
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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लेकिन सीमा होती हैं ........
माना कि संस्कार तुम्हारा
विवेक कभी न खोना हैं
कोई कितना कड़वा बोले
काम मगर सह जाना हैं
लेकिन भैया कब तक ऐसे
आँख मूंदकर बैठोगे
अधिकार अपने हिस्से का
गैरों को फोकट बाँटोगे
बंदर सारे उछल उछल कर
तुमको आँख दिखाते हैं
हक छीन कर आज तुम्हारा
तुमको बोल सुनाते हैं
माना अपना दिल बड़ा हो
लेकिन सीमा होती हैं
किस काम की ये जिंदगी
सब कुछ सह कर रोती हैं
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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गुफ़्तगू हो शायरी में शायरी में गम न हो
हो इनायत बस खुदा की आँख कोई नम न हो
हो मुहब्बत इस फ़िजा में आसमां हो ख़ुशनुमा
दे सुनाई मुस्कुराहट दर्द का मातम न हो
आरजू का है इजाफ़ा कम न होती प्यास है
पेट भर जाए गरीबी भूक का आलम न हो
सोच लो की भागना है कब तलक यूँ दर्द से
चाह में अच्छे दिनों के हादसे कायम न हो
खूब देखे है नजारे मौत से लिपटे हुए
मौत आ जाए मगर वो जिंदगी से कम न हो
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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लेकिन सीमा होती हैं ........
माना कि संस्कार तुम्हारा
विवेक कभी न खोना हैं
कोई कितना कड़वा बोले
काम मगर सह जाना हैं
लेकिन भैया कब तक ऐसे
आँख मूंदकर बैठोगे
अधिकार अपने हिस्से का
गैरों को फोकट बाँटोगे
बंदर सारे उछल उछल कर
तुमको आँख दिखाते हैं
हक छीन कर आज तुम्हारा
तुमको बोल सुनाते हैं
माना अपना दिल बड़ा हो
लेकिन सीमा होती हैं
किस काम की ये जिंदगी
सब कुछ सह कर रोती हैं
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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इंसानियत ........
धर्म और जाति में अब तक बटे है लोग
पाखंड की तलवार से कितने कटे है लोग
इंसानियत की बाते तो हर चौराहे होती है
दिल ही दिल में अपनाही धर्म रटे है लोग
खुली आँखों से यहां सच दबाया जाता है
झूटी ही बातो को सच करने डटे है लोग
तड़प रहा मरता कोई जान कौन बचाएगा
जाने क्यों गैर समझकर परे हटे है लोग
देख तमाशा इंसानों का शशी हुवा हैरान
मानवता भुलाकर के खुदमें सिमटे है लोग
धर्म और जाति में अब तक बटे है लोग
पाखंड की तलवार से कितने कटे है लोग
इंसानियत की बाते तो हर चौराहे होती है
दिल ही दिल में अपनाही धर्म रटे है लोग
खुली आँखों से यहां सच दबाया जाता है
झूटी ही बातो को सच करने डटे है लोग
तड़प रहा मरता कोई जान कौन बचाएगा
जाने क्यों गैर समझकर परे हटे है लोग
देख तमाशा इंसानों का शशी हुवा हैरान
मानवता भुलाकर के खुदमें सिमटे है लोग
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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सच्ची मुहब्बत ……….
मुहब्बत शिद्दत की निगाह है
दर्द में भी चाहत बेपनाह है
खुदा की इबादत जैसे मुहब्बत
दुनियां के लिये ये गुनाह है
मुश्किलें है हजारों माना मगर
मुहब्बत में ना इंतकाम है
लिखी किस्मतों में खुशियाँ अगर
किसे फिक्र क्या अंजाम है
चाहों अगर मुहब्बत की दुनियाँ
नर्क से भी बुरे लम्हात है
जरुरी नही हो ख्वाहिशें पूरी
वक्त में बदलते हालात है
मुहब्बत में हो केवल शराफत
मुहब्बत में ना अत्याचार है
पाने की चाहत ही है मुहब्बत
जिद में मगर झूठा प्यार है
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मुहब्बत शिद्दत की निगाह है
दर्द में भी चाहत बेपनाह है
खुदा की इबादत जैसे मुहब्बत
दुनियां के लिये ये गुनाह है
मुश्किलें है हजारों माना मगर
मुहब्बत में ना इंतकाम है
लिखी किस्मतों में खुशियाँ अगर
किसे फिक्र क्या अंजाम है
चाहों अगर मुहब्बत की दुनियाँ
नर्क से भी बुरे लम्हात है
जरुरी नही हो ख्वाहिशें पूरी
वक्त में बदलते हालात है
मुहब्बत में हो केवल शराफत
मुहब्बत में ना अत्याचार है
पाने की चाहत ही है मुहब्बत
जिद में मगर झूठा प्यार है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तेरी मेरी कहानी …….
ये जो तेरी मेरी कहानी है
लगने लगी पुरानी है
जाने कहां गुम हैं वो रातें
सिर्फ तेरी निशानी है
क्यों दूरियां आ भी जाओ
रात कैसी नूरानी है
जो बात बीती रही हैं कहां
तू भी मेरी दिवानी है
जो तुम रूठों तो मै मनाऊं
संग तेरे जिंदगानी है
----------------//**--
✒ शशिकांत
शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अजी सुनिये जनाब .........
बहुत ठगा है भैया तूने
अपने बोल बचन से
धीरे से क्यों पल्ला झाड़े
अपने ही वचन से
बेवकूफ़ क्या तूने जानी
जनता भारत देश की
धीरे धीरे देखेगा तू भी
हद जनता के आवेश की
बोल बचन से अबतक तेरे
"अच्छे दिन" ना आएं
जाती धर्म के दांव पेंच में
"विकास" को भुलाएं
आरक्षण का दांव चलाकर
तूने जो तीर है मारा
न्यायालय को आँख दिखाई
तबसे दिल है हारा
ऐसे कैसे आखिर तुमको
"सबका साथ" मिलेगा
जोड़तोड़ की राजनीति से
"किसका विकास" होगा
जानलों भारत की जनता
इतनी भी सोई नही है
तुम को लगता होगा लेकिन
सपनों में खोई नही है
सपनों में खोई नही है
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
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कृष्ण मोहे माफ़ कर .........
कृष्ण मोहे माफ़ कर
मैं ना करू पूजा
मोहे नाही जान तोरी
ना ही कोई दूजा
तू ठहेरो चक्रधारी
मानव मै छोटा
तोसे मेरो मेल नही
भक्त नही खोटा
मूरत तो बहुत देखी
देखा न सामने
दर्शन तुम देत नाही
सुना है नामने
मानव मैं डूब गयो
लालच के बाढ़ में
अब कुछ न दिखे मोहे
पैसन के आड़ में
तू आना तब आना
छोड़ मेरे हाल पे
अब मैं खड़ा हूँ ना
आखर किनार पे
गर तोहे दिखती हो
हालत संसार की
रख लाज दुखियों की
भक्तों के प्यार की
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
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न होना
कभी जुदा .........
चाहत
मेरी
बेगानी मुहब्बत
मेरी आशिकी
तुम्हारी इबादत
न होना कभी जुदा
बेगानी मुहब्बत
मेरी आशिकी
तुम्हारी इबादत
न होना कभी जुदा
न चाहो
मुझे
ये तुम्हारी है मर्जी
मेरी दिल्लगी
है मेरी खुदगर्जी
न होना कभी जुदा
ये तुम्हारी है मर्जी
मेरी दिल्लगी
है मेरी खुदगर्जी
न होना कभी जुदा
मंजिल
नही
होने पाएं जुदाई
हो जाएं भले
जिंदगी की बिदाई
न होना कभी जुदा
होने पाएं जुदाई
हो जाएं भले
जिंदगी की बिदाई
न होना कभी जुदा
तुम्हे
क्या पता
क्या चाहत है मेरी
तुम्हे चाहना
ये आदत है मेरी
न होना कभी जुदा
क्या चाहत है मेरी
तुम्हे चाहना
ये आदत है मेरी
न होना कभी जुदा
भुला दो
मुझे
या अपना बनालो
दो चार पल
हस कर बितालो
न होना कभी जुदा
या अपना बनालो
दो चार पल
हस कर बितालो
न होना कभी जुदा
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
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है जिंदा कहानी वो .........
उस
चुंबन में मेरे
थी
शिद्दत मुहब्बत की
मगर
तूने मानी
वो आदत
मुहब्बत की
हमेशा
ही मनमे
थी चाहत
मुहब्बत की
मगर तू
न जानी
इबादत
मुहब्बत की
वो
तस्वीर झूटी
हकीकत
मुहब्बत की
लबों से
लबों तक
शराफत
मुहब्बत की
तू गुम
है मगर
याद
यादें मुहब्बत की
है
जिंदा कहानी वो
रुकी
साँसे मुहब्बत की
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
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mind
न करो भाई .........
लो अब आजम बतायेंगे
क्या थे काम राजपूतों के
पूछे जरा बापसे अपने
कारनामे राजपूतों के
संभल कर बात कर पगले
कहीं न हो म्यान खाली
अभी सोये नही हैं वो
दबे हथियार राजपूतों के
मानो तो समझ लेना
तुम धमकी ही हमारी ये
तुम जैसे ना यहाँ के थे
हौसले काफ़ी राजपूतों के
शराफत देन है हिंद की
सहना भी खूब आता है
अरे तू इंतहा तो कर
सुन फिर शोर राजपूतों के
लो अब आजम बतायेंगे
क्या थे काम राजपूतों के
पूछे जरा बापसे अपने
कारनामे राजपूतों के
संभल कर बात कर पगले
कहीं न हो म्यान खाली
अभी सोये नही हैं वो
दबे हथियार राजपूतों के
मानो तो समझ लेना
तुम धमकी ही हमारी ये
तुम जैसे ना यहाँ के थे
हौसले काफ़ी राजपूतों के
शराफत देन है हिंद की
सहना भी खूब आता है
अरे तू इंतहा तो कर
सुन फिर शोर राजपूतों के
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
*************************************************
नजफ़
हैदर की पढ़ाई .........
नजफ़ हैदर बोल रहे है
पद्मावती
एक कहानी है
पद्मावत
साहित्य से आई
ऐतिहासिक
परछाई है
पागल ठैरे शायद हिंदू
जो इतना
आग बबूले है
मानो
भैये हैदर की बाते
इसने
जानी सच्चाई है
कहते है इतिहास न बोलो
कहदो
फिक्शन की बुनाई है
मिल जाए
प्रतिष्ठा थोड़ी
इसलिए
ऐतिहासिक बुलाई है
एक बात तो मै भी कहदू
हैदर जी
ये सच्चाई है
आपने
शायद गलत पढ़ा हो
पद्मावती
ने जोहर पाई है
कई है ऐसे बोल रहे जो
पद्मावती
एक कहानी है
नचवावो
इनकी भी रानी
कहदो एक
कहानी है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
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मेरी
आरजू .........
स्वच्छंद फिजाओं में खिलखिलाती हंसी हो
मानलो
जिंदगी चाँद तारों में जा बसी हो
दरबदर भटकती कहानियाँ अब कहा रही
हो नया
सवेरा, नई उड़ान न कोई बेबसी हो
एक पहल हो शुरू नये उजालों की ओर
वादियाँ
ख़ुशनुमा जमीं पर हरियाली हो
ना हो कोई जातिभेद नाही कोई राजनीति
अपनेपन
का जहां एक प्यारा सा समां हो
न ख़याल हो बुरे न परेशानी की लकीरें
अपनेपन
की जमीं प्यार का आसमां हो
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी
- ९९७५९९५४५०
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दिवाली
आई .........
दिया तेल बाती है रंगी रंगोली
खिला
आसमां है पटाखों की रेली
बड़े
बूढ़े बच्चे सब मिलके मनाये
ख़ुशी का है मौका आई दिवाली
ख़ुशी का है मौका आई दिवाली
लिखू मै
बधाई दिवाली है आई
सजाऊँ
घर आँगन मै लाऊँ मिठाई
बड़े शोर
से ना जलाऊं पटाखे
दिया ही
बहोत है मन में गर आई
आंगन में गोवर्धन है श्रद्धा ये प्यारी
धनतेरस
से लेकर गजब तयारी
भाई दूज
की पूजा अनोखी है लागे
अंत मे
जो आती पंचमी वो न्यारी
है त्योहार सबका न धर्म न जाती
सभी के
घरों में रोशनी जगमगाती
चलो आओ
मिलकर मनाये दिवाली
सौगात
कितनी दिवाली ये लाती
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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कलम
अकेली .........
चलों बात करते है
यूँ तो बहोत है बताने को
वक्त शायद कम है
फुरसत कहा सुनाने को
उंगली चल रही है
बटन दब रही कहने को
अल्फाज तैर रहे है
वक्त नही समझने को
कोई तो लिख रहा है
कुछ तो शायद जताने को
पढ़ना मुश्किल है
वक्त न आंख टिकाने को
कलम चल रही है
दूर तक साथ ले जाने को
मगर साथ कौन है
कलम अकेली निभाने को
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
*************************************************
क़त्लेआम .........
दद्दा मेरा लाल मर गया
ये कैसा बाजार भर गया
तेरे दर पर आई थी मैं
सुनी मेरी कोख़ कर गया
तुझपे भरोसा करती थी मैं
मेरा तो विश्वास उड़ गया
अब किसकी गुहार लगाऊं
आँचल में मेरे छेद पड़ गया
सरकारें कितनी भी आये
कर्म से पीछे क्यों हट गया
तूने पढ़ी है इतनी किताबे
फिर क्यों चोरोमें बट गया
पापहि शायद मैंने करे थे
जो तू ऐसा खेल कर गया
तूने कोई कसर न छोड़ी
मौत मेरे नाम कर गया
आख़िर तुझको कमी थी कैसी
जो तेरा ईमान बिक गया
सब तुझको भगवान है कहते
तू तो क़त्लेआम लिख गया
----------------------//**--
शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
**************************************************
उसे भारत भूमि कहते है .........
जहाँ देश को दर्जा माँ का है
जहाँ माँ को देवी कहते है
जहाँ भावनाओं की गंगा बहती
उसे भारत भूमि कहते है ।।
जहाँ भाँति भाँति की वेषभूषा
जहाँ भाँति भाँति की भाषा है
जहाँ हर जाति का बसा बसेरा
उसे भारत भूमि कहते है ।।
जहाँ संस्कृति एक गहराई है
जहाँ आयुर्वेद बड़ी पढ़ाई है
जहाँ युवावर्ग की फौज खडी
उसे भारत भूमि कहते है ।।
जहाँ विविध धर्म का ज्ञान है
जहाँ आधुनिक एक सम्मान है
जहाँ झुकती अदब में है गर्दन
उसे भारत भूमि कहते है ।।
----------------------//**--
शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
**************************************************
समां फिर रुक गया .........
समां फिर रुक गया मानो की कोई यार आया है!
बहोत दिन बाद जो देखा वो बिता प्यार आया है!!
वो आंखे थी कि जैसे कह रही हो हम तो अपने है!
खजाना मीठी बातों का तड़पकर पार आया है!!
अगर हम भूलना चाहे लबों की मुस्कुराहट वो!
दिलाने याद फिर हमको वो खबरदार आया है!!
हम तो बैठे बड़े आराम से कुछ सोच जारी थी!
यहां हम सोचने बैठे देखा दिलदार आया है!!
देखो हम छोड़ बैठे थे उम्मीदें हँसने गाने की!
शशि के वासते लेकर खुशी का हार आया है!!
समा फिर रुक गया मानो की कोई यार आया है
बहोत दिन बाद जो देखा वो बिता प्यार आया है
----------------------//**--
शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
**************************************************
मछली थी फोकट की .........
मछली थी फोकटकी
जान की ना कीमत थी
भरी सड़क पर कोई मरा
देखने की ना फुरसत थी
बिखरी पड़ी थी गाड़ियां
सड़क खून से सनी थी
एक लाश बाजू में पड़ी
पर मछली अधमरी थी
व्वा रे इंसान तेरी कहानी
इंसानियत मर रही थी
घायलों को कोण देखता
तुझे खाने की पड़ी थी
कल मरेगा तू भी ऐसे ही
बेबस पर क्या बीती थी
देख टिव्ही में अपनी सूरत
सूरत वो जैसी दिखती थी
-------------------//**---
चलों बात करते है
यूँ तो बहोत है बताने को
वक्त शायद कम है
फुरसत कहा सुनाने को
उंगली चल रही है
बटन दब रही कहने को
अल्फाज तैर रहे है
वक्त नही समझने को
कोई तो लिख रहा है
कुछ तो शायद जताने को
पढ़ना मुश्किल है
वक्त न आंख टिकाने को
कलम चल रही है
दूर तक साथ ले जाने को
मगर साथ कौन है
कलम अकेली निभाने को
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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क़त्लेआम .........
दद्दा मेरा लाल मर गया
ये कैसा बाजार भर गया
तेरे दर पर आई थी मैं
सुनी मेरी कोख़ कर गया
तुझपे भरोसा करती थी मैं
मेरा तो विश्वास उड़ गया
अब किसकी गुहार लगाऊं
आँचल में मेरे छेद पड़ गया
सरकारें कितनी भी आये
कर्म से पीछे क्यों हट गया
तूने पढ़ी है इतनी किताबे
फिर क्यों चोरोमें बट गया
पापहि शायद मैंने करे थे
जो तू ऐसा खेल कर गया
तूने कोई कसर न छोड़ी
मौत मेरे नाम कर गया
आख़िर तुझको कमी थी कैसी
जो तेरा ईमान बिक गया
सब तुझको भगवान है कहते
तू तो क़त्लेआम लिख गया
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शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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उसे भारत भूमि कहते है .........
जहाँ देश को दर्जा माँ का है
जहाँ माँ को देवी कहते है
जहाँ भावनाओं की गंगा बहती
उसे भारत भूमि कहते है ।।
जहाँ भाँति भाँति की वेषभूषा
जहाँ भाँति भाँति की भाषा है
जहाँ हर जाति का बसा बसेरा
उसे भारत भूमि कहते है ।।
जहाँ संस्कृति एक गहराई है
जहाँ आयुर्वेद बड़ी पढ़ाई है
जहाँ युवावर्ग की फौज खडी
उसे भारत भूमि कहते है ।।
जहाँ विविध धर्म का ज्ञान है
जहाँ आधुनिक एक सम्मान है
जहाँ झुकती अदब में है गर्दन
उसे भारत भूमि कहते है ।।
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शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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समां फिर रुक गया .........
समां फिर रुक गया मानो की कोई यार आया है!
बहोत दिन बाद जो देखा वो बिता प्यार आया है!!
वो आंखे थी कि जैसे कह रही हो हम तो अपने है!
खजाना मीठी बातों का तड़पकर पार आया है!!
अगर हम भूलना चाहे लबों की मुस्कुराहट वो!
दिलाने याद फिर हमको वो खबरदार आया है!!
हम तो बैठे बड़े आराम से कुछ सोच जारी थी!
यहां हम सोचने बैठे देखा दिलदार आया है!!
देखो हम छोड़ बैठे थे उम्मीदें हँसने गाने की!
शशि के वासते लेकर खुशी का हार आया है!!
समा फिर रुक गया मानो की कोई यार आया है
बहोत दिन बाद जो देखा वो बिता प्यार आया है
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शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मछली थी फोकट की .........
मछली थी फोकटकी
जान की ना कीमत थी
भरी सड़क पर कोई मरा
देखने की ना फुरसत थी
बिखरी पड़ी थी गाड़ियां
सड़क खून से सनी थी
एक लाश बाजू में पड़ी
पर मछली अधमरी थी
व्वा रे इंसान तेरी कहानी
इंसानियत मर रही थी
घायलों को कोण देखता
तुझे खाने की पड़ी थी
कल मरेगा तू भी ऐसे ही
बेबस पर क्या बीती थी
देख टिव्ही में अपनी सूरत
सूरत वो जैसी दिखती थी
-------------------//**---
✒ शशिकांत शांडिले,
नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटी .........
दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटी
तड़प तड़पकर माँ को पुकारे
माँ मै तुझसे प्यार हु करती
जैसे हो माँ मुझे बचाले
माँ जो आई देख वो मंजर
होश तो जैसे उसने गवायें
नम आँखोंसे कोशिश माँ की
बेटी को वो गले लगाये
टुकडे वो माँ कैसे समेटे
मदत मांगते वो गिड़गिड़ायें
लोग खड़े थे जैसे तमाशा
कोई मदत को आगे न आये
बनी नपुंसक विचारधारा
वीडियो का था एक नजारा
मानवता का नाम न लेना
मासूम को ना मिला सहारा
आधा घंटा तड़प तड़पकर
बेटी ने जो प्राण है छोड़े
देख तमाशा इस जीवन का
माँ ने अपने हात है जोड़े
देख तमाशा इस जीवन का
माँ ने अपने हात है जोड़े
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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न कर सकी तू वफ़ा .........
न कर सकी तू वफ़ा ऐ सनम
मुझे तुझसे कोई गिला भी नहीं
न कर सकी तू वफ़ा ...............
चाह क्या थी तेरी ऐ हमदम
कभी जुस्तजू तो की होती
हम तो थे राहो में खड़े हरदम
कोशिशें ढूंढने की की होती
न कर सकी तू वफ़ा ...............
ख्वाहिशें जो भी थी मेरे दिलमें
जो भी थी कहती थी मेरी आँखे
जी रही थी लेकर दर्द सिनेमें
मुझसे क्यों कह न सकीं तेरी आँखे
न कर सकी तू वफ़ा ...............
अब जो तू सामने नहीं है सनम
दिल यु मायूस हो जाता है
चाह ये है तुम मिलो अगले जनम
बिन तुम्हारे जिया न जाता है
न कर सकी तू वफ़ा ऐ सनम
मुझे तुझसे कोई गिला भी नहीं
न कर सकी तू वफ़ा ...............
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बहोत छोटी है उम्र जिंदगी की .........
बहोत छोटी है उम्र जिंदगी की
कशमकश भरी राह जिंदगी की
भर आती है आँखे याद कर कुछ
छूट जाती है सौगात जिंदगी की
है तो मानो सारी खुशिया जिंदगी में
है कमी सी खल रही क्यों जिंदगी की
चल रही है रात दिन नित जिंदगी ये
उड़ रहा मन ओढ़ चुनरी जिंदगी की
रिश्ते नाते प्यार नफ्रत है बहोत से
प्यास फिर मिटती नहीं क्यों जिंदगी की
है अधूरी बात कोई छल रही जो
सोचता हु चाह क्या है जिंदगी की
अब तो बस उम्मीद छोड़े चल रहा हु
हो रहा जो मर्जी मानो जिंदगी की
ना शिकायत ना गिला अब है किसीसे
मैं भी चलदू राह पकडे जिंदगी की
मैं भी चलदू राह पकडे जिंदगी की
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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धड़कनों को तेरे संभाला तो होता .........
गम मनाऊ तो कैसे रिश्ता तो होता
चल सके साथ मेरे फरिश्ता तो होता
गया छोड़ दुनिया वो मर्जी थी तेरी
मोहोब्बत का मेरे यूँ सौदा न होता
बात ऐसी नहीं भूल जाऊ मै सब कुछ
याद करने को तू अपना तो होता
क्या राज जाने दफ़्न दिल में रख्खे थे
एक बार मुझसे कह दिया तो होता
गम नहीं मुझे और गम भी है शायद
हाल दिल का तेरे दिखाया तो होता
तू दूर था सही मै अंजान हो बैठा
दूर से सही रिश्ता निभाया तो होता
जब पता चला तू चल दिया अकेले
याद कर के मुझे तूने देखा तो होता
मै दुश्मन नहीं था याद भी ना आई
धड़कनों को तेरे संभाला तो होता
मै दुश्मन नहीं था याद भी ना आई
धड़कनों को तेरे संभाला तो होता
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मेरी भी एहतियात होगी .........
पहले जो सच की खबर होती
न यु बेवजह जुरूरत होती
कितना वक्त बिता उलझनों में
न यु अंजान हुकूमत होती
चलो अच्छा है जो हुवा सो हुवा
अब न कोई हिमाकत होगी
अपने ही सपने मानो थेे बेवफा
अब न कोई इबादत होगी
रह गई जो बाते वो दफ्न कर दी
उजालों से नई जमानत होगी
क्या हुवा गर ठहरे डूबने से पहले
अनचाही कोई इजाजत होगी
अब जो मिला है साथ किसीका
वक्त की ये शराफत होगी
यकीनन नहीं यकीं मुझे तुझपर
कल फिर नई कयामत होगी
लगता तो है कभी कभी की तू है
मेरी नफरत तेरी उक़ूबत होगी
कर जो चाहे यकीनन तू बड़ा है
हर पल मेरी भी एहतियात होगी
हर पल मेरी भी एहतियात होगी
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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कोशिश तो बहोत की .........
कोशिश तो की
न की, ऐसा कुछ नही
मिन्नत भी की
न की, ऐसा कुछ नही
आरजुयें रोती रही
अपने ही कंधो पर सर रखकर
फ़रियाद भी की
न की, ऐसा कुछ नही
अंजान थी डगर
जाने क्यू चल पड़ी हसरते
जिद भी की
न की, ऐसा कुछ नही
मानली हार दिलने
अपने ही अधूरे सवालों से
कोशिश तो बहोत की
न की, ऐसा कुछ भी नही
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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उनका क्या कर पायेंगे .........
गद्दारों को पकड़ पकड़ कर
कैसे मार गिरायेंगे
छुपकर बैठे दामन में माँ के
उनका क्या कर पायेंगे
खैर वो तो दुश्मन, दुश्मन ठैरे
आतंकवाद बढायेंगे
अपने भाई जो भटक गये
उनका क्या कर पायेंगे
मिट्टी अपनी खून भी अपना
किसका लहुँ बहायेंगे
स्वार्थ की खातिर खुदको बेचें
उनका क्या कर पायेंगे
ऊँच नींच का पगड़ा बहका
समतल क्या कर पायेंगे
जाती धर्म पर लढ रहें जो
उनका क्या कर पायेंगे
कातिल अपने क़त्ल भी अपना
किस को दोष लगायेंगे
अपने हि कुत्ते पागल हो बैठे
उनका क्या कर पायेंगे
हम उनका क्या कर पायेंगे
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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है बधाई ईद आई .........
है बधाई है बधाई ईद आई ईद आई
है बधाई ईद आई
दिली बधाई है मेरे भाई
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई
जश्न-ईद का साथ मनाये
जात धर्म सब छोड़ भाई
है बधाई है बधाई ईद आई
क्या लेकर आई ये दुनियाँ
धर्म जात किसने बनाई
यार पढ़ले एकबार तू गीता
क़ुरान मैंने दिल में बसाई
है बधाई है बधाई ईद आई
गुरुद्वारे में सजदा करू मैं
चर्च में बाईबल अपनाई
खून तो देखो एक जैसा है
रंग रंग में क्यू है बुराई
है बधाई है बधाई ईद आई
चंद मतलबी चाहे झुकाना
झुकी कभी ना है सच्चाई
अमन शांती के हम रखवाले
दुश्मनों की शामत है आई
है बधाई है बधाई ईद आई
नफरत की औकात क्या है
आज प्यार की रुत है आई
हम सब यारो मिल कर गाये
ईद आई ईद आई ईद आई
है बधाई है बधाई ईद आई ईद आई
है बधाई ईद आई
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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औकात ये है अपनी .........
तू मंदिर मैं मस्ज़िद
तू चर्च मैं विहार
तू ये तू वो मैं ये मैं वो
धर्म का बाजार
औकात ये है अपनी .........
सिखा अब तलक जो
बड़ो ने ही पढ़ाई है
तीव्र गती से अब
बढ़ रही तबाही है
औकात ये है अपनी .........
अच्छा न बोले कोई
हर कोई लाचार है
मिडिया भी क्या देखे
खबरों का बाजार है
औकात ये है अपनी .........
राजनीती स्वार्थ भरी ये
नेतागन बातूने सारे
बलगलाते गरीब को
गरीब करे क्या बेचारे
औकात ये है अपनी .........
गरीब की नौटंकी देखो
सुविधाये पचती नहीं है
चाय के टपरी पर बाते
किस्मत क्यू बनती नही है
औकात ये है अपनी .........
लाज शरम सब छोड़ गई
कपड़ो की परिभाषा
बलात्कार का ट्रेंड चला है
निर्भया कभी ये आशा
औकात ये है अपनी .........
हर कोई बातों में लगा है
सच्चाई को मोल नही है
झूठ की तेज धार है यारो
सच की तो औकात नही है
औकात ये है अपनी .........
खंजर गोली का है जमाना
कलम की धार नही है
देश चला विकास करने
पर पूरा आधार नही है
औकात ये है अपनी .........
बातों का अंबार यहाँ पर
एकता का द्वार नही है
हर तरफ बस मैं ही मैं हूँ
हम का व्यवहार नही है
औकात ये है अपनी .........
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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स्वतंत्रता दिवस .........
बड़े शिद्दत से चंद दिन
हिंदुस्तान याद किया जायेगा
फिर हमेशा की तरह
हिंदुस्तान भुला दिया जायेगा
होली दिवाली की तर्ज पर
स्वतंत्रता दिवस मनाया जायेगा
फिर हमेशा की तरह
अगले साल के लिए छोड़ा जायेगा
बात होगी देश और ईमान की
जर्रे जर्रे में देशप्रेम नजर आयेगा
फिर हमेशा की तरह
मेरा हिंदुस्तान तनहा पाया जायेगा
फिर हमेशा की तरह
मेरा हिंदुस्तान तनहा पाया जायेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अब से एकांत ही .........
अब न कोई ख़्वाब आँखों में होगा
हर दर्द मोहोब्बत का दिल में होगा
हरगिज न होगी जरुरत किसीकी
हर वक्त वो साथी खयालो में होगा
न होगी चाहत कोई न आसमां होगा
हर तरफ धुँवा ख़ाक दिल का होगा
खुद हँसता है दिल अपने मर्ज पर
सोचा न था दर्द इतना बेवफा होगा
चलो अच्छा है तस्सली तो मिल गई
हर सफर जिंदगी का अकेला होगा
अब न उम्मीद किसी हमसफ़र की
हर मंजिल पे खड़ा टूटा सपना होगा
मान गया मैं तक़दीर के फैसले को
अब न कोई फैसला मेरा अपना होगा
जिस डगर ले जाये किस्मत की लकीरें
वही डगर अब से मेरा नया पता होगा
हर कोई चला जब छोड़ कर हात मेरा
फिर क्यू किसी रिश्ते पर ऐतबार होगा
एकांत में जीना सीख लिया 'शशि' ने
अब से एकांत ही मेरा नया नाम होगा
अब से एकांत ही मेरा नया नाम होगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तुमबिन .........
तेरी खूबसूरत अदाओ के सदके
उमर ये बिताऊ तुझे याद करके
तुझे देखकर अब जीना है मुझको
छुपालू तुम्हे अाओ बाहो मे भरके
आँखे नशीली लबो की वो लाली
दीवाना बनाये ये मुस्कान तेरी
तुझे क्या खबर मेरे चाहतो की
तुझे चाहना ही आदत है मेरी
दिलकी तू ख्वाहिश तू अारजू है
तुझे भूलकर अब जीना नही है
कैसे बिताऊ तुमबिन ये जीवन
तुमबिन तो अब यु जीना नही है
तेरी खूबसूरत अदाओ ...........
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मेरी मोहोब्बत .........
माना की हसीं वहम है मोहोब्बत
मगर बड़ी ही बेरहम है मोहोब्बत
चाहते भी क्या थी इस नादाँ दिलकी
वफ़ा में जो पाया जख्म है मोहोब्बत
चाहो भी शिद्दतसे अगर किसीको
पालो अगर तो मरहम है मोहोब्बत
हर एक की तक़दीर में नही होती
हो तो रहमत-ए-करम है मोहोब्बत
हम तो है ही जिंदा उनकी यादों में
हम कब कहे की कम है मोहोब्बत
उनको रुलाने की सोच भी न पाये
दी गई हमारी ये कसम है मोहोब्बत
गर जी सके वो तो शौक से जिले
जुदाई में हासील गम है मोहोब्बत
हम तो करेंगे इंतजार ताउम्र उनका
गर वो आये तो संगम है मोहोब्बत
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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हस पगले तू .........
हस पगले तू हँसले थोडा
सारी उमर है तुझको रोना
ये जीवन का कड़वा सच है
क्या पाना था क्या है खोना
जो सोचेगा होगा कभी ना
जीवन सपनो सा है खिलौना
मानले तू यही है सच्चाई
थोडा हसना और थोडा रोना
रोकर अपने दिल ही दिल में
राज वो कड़वे सारे दबाना
भूलकर अब ये जीवन तेरा
हसते हुये दिन रात बिताना
जीवन क्या है एक छलावा
भावनाओंके खेल है सारे
किस्मत का हात पकड़ चल
टुटता है जब सपने तेरे
रोना धोना मरते दम तक
तुझको है औरो को हसाना
अपने लिए तो हर कोई जीता
औरो के लिए है तुझको जीना
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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दौर .........
अब ना वो दौर रहा हसीं बचपन का
अब फकत आरजुएं जान ले रही है
तब तो लालच था चंद सिक्को का
अब यही लालच पैमाने भर रही है
तब था माँ का आँचल बाप का साया
अब साँसे खुद रूठकर मना रही है
दौर वो भी ख़त्म हो चूका दोस्ती का
अब दोस्ती वो मतलब दिखा रही है
कच्ची केरिया अमरुद की चोरिया
चोरी बदलकर भ्रष्टाचार हो रही है
वक्त ना रहा मासूम इंसानीयत का
लेकर खंजर इंसानियत चल रही है
तब तो थी लढाई खिलोनो के लिये
अब तो लढाई बट्वारे कि हो रही है
तब परसी जाती थी थाली प्यार से
अब हर रिश्तो मे दिवार बंध रही है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तनहा था शशि .........
तनहा था शशि चांदनी मिल गई
अँधेरी रात को रोशनी मिल गई
क्या करू गिला मै कुछ भी नही
रूठी थी सड़क मंजिल मिल गई
फिर न जाने क्यू बढ गये फासले
देखे जो सपने मैने बिखरणे लगे
क्या हुई खता जो रोशनी रूठ गई
हसरते भी दिलके अब हारणे लगे
रूठ गई आरजू खो गया आसमां
जोडे थे रिश्ते कभी अब छुटने लगे
फिर वही दौर लौटा है गुजरा हुवा
पल जो भूल गये थे याद आणे लगे
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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समझौता .........
हक नही मुस्कुराने का
मगर मुस्कुरा लेता है
अपने ही सपनो को वो
ऊजाड़ कर जी लेता है
न कर यकीं इस चेहरे पर
ये चेहरा तो दगा देता है
दिख रहा जो सच नही
सच भी बेवफा होता है
समझ न पाया खुदको
हकीकत या तमाशा है
अब तो दिल भी हार चूका
हकीकत को अपनाना है
शशि का क्या है यारो
जो है बस वही जी रहा है
क्या शिकायत जिंदगी से
समझौता कर लिया है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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सड़क हादसा .........
सड़क हादसो में कोई घायल हो
रास्तो पर पड़ी कोई शिकायत हो
डरने की अब कोई जरुरत नही
बस नेकी दिलकी इनायत हो
अब यहा न कोई दिक्कत होगी
पुलिस की न जबरदस्ती होगी
बेधड़क पोहच जाओ अस्पताल
डॉक्टर की न शिकायत होगी
कोई परचा भी ना जरुरी होगा
डर की न कोई परछाई होगी
कह दिया न्यायालय ने आखिर
मदतगार को तकलीफ ना होगी
किसी का कोई जुलम ना होगा
तेरी हिम्मत को सम्मान मिलेगा
बहुत मर चूकी इंसानियत यारो
अब सड़क पर ना कोई मरेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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ये भी क्या जीना .........
जी लू अब सपनो में मै
हकीकत ना रास आती है
तेरी जुदाई का जख्म उठाकर
मिली कुछ तनहाई है
सोचा न था कुछ यु भी होगा
सपना मेरा तो अधूरा है
प्यार का क्या तोहफा मिला है
हरतरफ बस सन्नाटा है
अब न कोई आरजू दिलमे
चाहत की परछाई बची है
जाने क्या सितम कर गई
मोहोब्बत कि जुदाई है
दिल का दर्द सहा न जाए
किस्मत कि रूसवाई है
तुम रूठी तो रूठी दुनिया
तुम्हारी बस परछाई है
छलनी होकर रह गया सीना
ये जीना कैसा जीना है
तुझसे बिछड़कर मिट गया हू
अब तो साँसे गिनना है
अब तो बस साँसे है गिनना
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तू छोड़ दे तेरी अधूरी मोहोब्बत .........
तू छोड़ दे तेरी अधूरी मोहोब्बत
मै मेरी मोहोब्बत युही निभाता हु
बेवफाईको तेरे वफ़ा जानकार मै
हसकर गमको गले से लगाता हु
गुजरे जमाने जो संगतमें तेरे
लम्होंको सारे दिलमे बसाता हु
छूटी अधूरी मंजिल जो मेरी
मंजिलको मेरे मै भूल जाता हु
फ़िक्र न कर तू मेरे चाहतो की
चाहत को मेरे दिलमे दबाता हु
भुलादे यकिनन मोहोब्बतको मेरे
यादो में तेरे जिंदगी बिताता हु
नही फासले कोई दरमियाँ हमारे
फासलोंको सारे मै हि मिटाता हु
तुझे भूलना शायद हो जाये मुश्किल
तुझे ही मै अपनी जिंदगी बनाता हु
तुझे ही मै अपनी जिंदगी बनाता हु
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अभी बाकी है .........
क्या हुवा गर टूट गया बिखरना तेरा बाकी है
डालीसे थोडा दूर भले खुशबु अभी बाकी है
महकने दे औरोको तेरे नामसे चोटही खानी है
थक जाये गर अभीसे ऐसे जिंदगानी बाकी है
दो अनजान लोगोको तेरी चमक मिलायेगी
मदतसे तेरी पगले दिल और धड़कने बाकी है
छोड़ न फर्ज तू ऐसे लिख्खे तेरे इस तक़दीर का
देख मेरे दोस्त तेरा मुरझाना अभीभी बाकी है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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जमाने की तुझे जरूरत नही है .........
कुछ देखले खुदको बदलकर
जाने मगर तू सोचता क्या है
जिम्मेदारी क्या होनी चाहिये
जाने मगर तू करता क्या है
भूल बैठा तू सोचने की ताकत
बस किसी और का जी रहा है
सारा सच है सामने ही मगर
खुदसेही भागता फिर रहा है
दोष देता है हर किसीको मगर
अपना गिरेबां झांकता नही है
हर वक्त लगा कोसने औरोको
अपनी खामिया धूंडता नही है
क्या करेगा बेनाम जिकर ऐसे
जब तेरा कोई अफ़साना नही है
खुदकी नजरो से उठ जरासा
जमानेकी तुझे जरूरत नही है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मकरसंक्रांती .........
कटी पतंग पकडो पकडो
सडक सडक भागो दौडो
देख संभलकर गाडी आई
पतंग से ना जानको तोलो
मीठा मीठा गुड मिलाकर
तिल्ली के जो लड्डू बनाये
मम्मी को तुम थँक्स बोलो
देखो क्या पकवान बनाये
खालो खेलो मस्ती करलो
आज दिनभर पतंग उडाये
सभी दोस्त मिल एकजगह
मकरसंक्रांती पर्व मनाये
पतंग उडाये और लड्डू खाये
दौडे भागे और मौज मनाये
किसीको ना तकलीफ देकर
प्यारसे सब त्योहार मनाये
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मै भी न करू तकरिरे .........
मै भी न करू तकरिरे खुदा ये क्या सितम है
ये तो पैमाने लिखें थे बदनाम तकदिर के
कुछ ठहरी हुई दास्ता मै बढ़ रहा हु मगर
ये अफसाने लिखें थे मेरे कुछ उम्मीद के
शौक से मुस्कुराईये हाल-ए-दिल परेशा
जख्म दिलपर दिखते तुटे उन्ही सपनो के
मिलेगा जहां मुकम्मल कोशिश है रात दिन
हुवा बरबाद अब तक पल थे वो कमजोरी के
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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आतंकवादी बन जाऊंगा .........
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
आतंकवादी बन पाकिस्तान घूस जाऊंगा
घुट घुट जिना है जिनको मै जी न पाऊंगा
देशकि खातीर कुछ दुश्मन मार गिराऊंगा
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
डर डर मरनेसे अच्छा चैनकी नींद पाऊंगा
देश के दुश्मनको अच्छा सबक सिखाऊंगा
आतंकवादी बन मै गुंडागर्दी कर जाऊंगा
लोग चाहे जो कहे मै अपना गीत गाऊंगा
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
सरकार कब जाने क्या फैसला सुनायेगी
देशहित कि खातीर अपना खून बहाऊंगा
इतना मै कमजोर नही देखता रह जाऊंगा
जो छेडेगा मेरे वतनको उसको मै मिटाऊंगा
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
आतंकवादी बन पाकिस्तान घूस जाऊंगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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चाहत ये जो है .........
इतनी भी चाहत न कर कि आफत हो जाये
सारी दुनियासे तेरी खातीर बगावत हो जाये
बस रख अपने दिलके किसी कोनेमे बसाकर
कही चाहत मे मेरा प्यार शापित हो जाये
डर लगता है अक्सर तुझे खो न दु मै कही
शायद यही चाहत मेरी ईबादत हो जाये
देख न पाऊंगा होते तुझे रूक्सत डोलीमे
यही चाहत मेरे मरने का कारण हो जाये
चाहता तो हु मै भी तुझे बेइंतहा ऐ सनम
डरता हु इस संगतकी मुझे आदत हो जाये
हा जी न पाऊंगा यकिनन मै तेरे बिन
नजदीकियों के बाद जुदा किस्मत हो जाये
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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उम्मीदे .........
दर्द का साथ मै भी निभाता चला गया
हसते रोते खुद राह दिखाता चला गया
करवटे बदली जब मैने रातके सायेमे
मै सपनो का घरोंदा बनाता चला गया
कुछ तुटे कुछ जुड़े कुछ अफ़साने बने
सपनोको ख्वाहिशोसे सजाता चला गया
देखी आईने मे जब हकीकत-ए-जिंदगी
यकीनसे जुडी उम्मीदे जगाता चला गया
उम्मीदे आती रही जमानेके पैरो तले
उन्ही उम्मीदो को फिर चलाता चला गया
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मै इंसान बदनाम .........
क्या हिंदु क्या मुसलमान
बिकने लगा सबका ईमान
हमतो कहते है लटका दो
क्यू छूट गया यु सलमान
क्या हिन्दु क्या मुसलमान
स्वार्थी हो रहा है इंसान
हमतो कहते है लटका दो
क्यू पल रहा है आसाराम
क्या हिन्दु क्या मुसलमान
पैसोका है सारा घमासान
हमतो कहते है लटका दो
क्यू हो रहा हु मै बदनाम
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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जिंदगी एक कश्ती .........
कुछ वक्त के सितमसेे हम सिहरसे गये
कुछ यादो मे उनके हम बिखरसे गये
जा धुंड ला पल जो बीते उनके सायेमें
जो देखे थे मैंने सपने सारे तुटसे गये
मौसम था खुशनुमा थी बहारसी सजी
उसी बहार में जिन्दगीके पन्ने झळसे गये
तुटा हुवा है शीशा आजभी उस घरका
जिंदगी की राहो मे हम यु भटकसे गये
कागज़ की कश्ती कुछ डूबी इस तरह
कभी पास थे किनारे अब वो छुटसे गये
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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इंसानियत भूलाने मे .........
लोग कहते है
लोग कहते है नर्क बुरा है
वहा दर्द का जलजला है
मै कहता हु
मै कहता हु नर्क क्या है
यहा जिंदगी बुरी बला है
रोज नये तमाशे
रोज नये तमाशे इंसानके
झगडे देखलो घर घरके
इंसानही काटता
इंसानही काटता इंसानको
जिंदगी सायेमे खौफके
हर कदम दगा
हर कदम दगा देती संगत
यकीन करे भी तो किसका
अपनेही छोडते है
अपनेही छोडते है दर्द मे साथ
ये तो नही संस्कार संसारका
देखा न कभी
देखा न कभी नर्क किसीने
है ऐतराज वहा सबको जानेमे
इंसानको कहा
इंसानको कहा लगता है डर
आज कल इंसानियत भूलानेमे
इंसानियत भूलानेमे
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मुकम्मल जहां .........
कुछ वक्त के लपेटो मे लिपटे
कुछ लम्हो का सन्नाटा था
उम्रभर ख्वाहीशो मेही सिमटे
कुछ किस्मत का तकाजा था
करते थे आरजू मिले हसीन पल
किसी पल का सहारा न था
हसरत तो थी आसमान छुनेकी
वो भी आसमान धुंदलासा था
है उम्मिदे अबभी जागी जागी
हर वो सपना अधुरासा था
यकिनन मुकम्मल होता जहां
पर मुकम्मल जमाना न था
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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हाल क्या है जनाब का .........
लोकपाल है या जोकपाल
कोण ठहरायेगा
क्या कर रही दिल्ली सरकार
कोई समझायेगा
बंद हो रही आधी गाडीया
मौसम सुधर जायेगा
हर वक्त एक नया झमेला
ऐसे काम हो पायेगा
करले काम जनाब-ए-आला
तकदीर बदल पायेगा
मासूम जनताकी कुछ उम्मिदे
क्या पुरी भी कर पायेगा
इनकेही दोस्त बन गये दुश्मन
कारण कोई बतायेगा
बस उछल रहे बंदर यहापर
दिलवाला सुधर जायेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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जैसी करणी वैसी भरणी .........
कुदरत कि ये कैसी इंतहा है
दुनिया धीरे धीरे मिट रही है
बेकसूर चेहरो कि बेबसी कैसी
मेरा गुनाह धरती भुगत रही है
बडो कि थी शुरुवात यकिनन
मै खुनी हात रंगाता चला गया
आखिर मेरी किस्मत का लिख्खा
अंजाने दुनिया मिटाते चला गया
डूबने लगा मेरे खुशियो का घर
क्या छोटे बडे क्या नर नारी है
अफसोस तो होता है अब मगर
मैने हि कुदरत को सताया है
देख नजारा नम होती है आंखे
पाणी पाणीसी जिंदगी हो रही है
क्या सोच कि थी बरबादी मैने
मेरीही कश्ती सागर मे खो रही है
----------------//**--
✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बता दोष किसका ? .........
तुनेही मिलाई हा मे हा
और झांसा दिया उसने
गलती करती रही तुही
बलात्कार किया उसने
बता दोष किसका ?
जब तलक थी महबुबा
हर सितम प्यारे उसके
अब लगाती इल्जाम
पडणे लगे ताने जमाने
बता दोष किसका ?
तुझे भी तो थी चाहत
उसकेही पास जानेकी
शादी से पहलेही
इज्जत अपनी लुटानेकी
बता दोष किसका ?
क्यू देती दोष उसको
मर्यादा तुने लांघी है
तेरे ही करम है लडकी
नारी लाज तुने बांटी है
बता दोष किसका ?
जब कर लिये पाप तुने
दुखडा किसे सुनाती है
किस्मत ये लिख्खी तुने
रपट उसकी लीखाती है
बता दोष किसका ?
तू हो रही थी बरबाद
तब क्या तू नादान थी
अब हो रही परवाह
क्या यही तेरी जिंदगी थी
बता दोष किसका ?
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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दावत - ए - जश्न .........
जन्मदिन गरीबका जाणे कोण मनायेगा
आंगण रोशनिसे उसका कोण सजायेगा
गरीबको आजभी ना मिलती है रोटी
देखो नेताजीका जन्मदिन मनाया जायेगा
न सडके न पाणी नाही बिजली के तार
रोशनिसे दुल्हेका मंडप सजाया जायेगा
जहा रोज मनती है गोलीयोसे दिवाली
फिर बंदुकोसे अपना दम दिखाया जायेगा
गरीबका न जाणे कब होगा विकास यहा
अमिरो का भरत मिलाप दिखाया जायेगा
एक दुसरोको मिडीया मे दि जाती है गाली
जन्मदिन मे उनकोभी गलेसे लगाया जायेगा
वाहरे किस्मत तुनेभी क्या चाल चलाई है
तेरे रहम से गरीबका पैसा उडाया जायेगा
जिसको मिलना चाहिये वो आजभी भुखा
और यहा दावत - ए- जश्न मनाया जायेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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देख मेरे भाई .........
भूल गई जनता वो जंगल का राज
लौट आये फिरसे नितीशे कुमार
देखी यहा सबने जनता कि चतुराई
बाहरी छोड बिहारीसे प्रीत लगाई
करी तो कोशिश बाहरीनेभी क्या खूब
फिरभी न खिल पाया कमल का फुल
यही तो है किस्मत जनताकी हुजूर
गधे न पढ पाये अबभी है घोडे चतुर
युही होगी तस्वीर अबभी मुरझाइसी
या दिखाई देगी विकास कि परछाइसी
कर दि एन.डी.ए.कि जोरदार पिटाई
दल दल कि जो महागटबंधन पार्टी बनाई
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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क्यू न करू तारीफ़ .........
ले आयेंगे उसे चौखटपर
वहशी मुजरीम बताकर
सजाभी सुनाई जायेगी
मरहम दिलपे लगाकर
जमाना बीत गया धुंडने
उसे गुनहगार बताकर
वोभी करता रहा सितम
जमाने दहशत फैलाकर
करेंगे कोशिश हुजूर अब
पीठ अपनी थपथपाकर
किया काम तारीफे काबिल
हुजूरेआला पैगाम सुनाकर
तारीफ़ होगी यकिनन जो
रख्खा अफ़साना बनाकर
देशभर होगा माहोल हसीं
करें जश्न दिवाली मनाकर
सरकारने कर दिया काम
अपनी ईमानदारी दिखाकर
अब जजभी करदे यु करम
गुनहगारको फ़ासी चढ़ाकर
बड़ी रोई है ये मेरी आँखे
हकीकत-ऐ- जुल्म देखकर
बड़े दिन गुजर गये शायद
मेरे इस देशको मुस्कुराकर
उम्मीद है अब न होगी वो
मायूसी भारत के चेहरेपर
दाऊदभी आयेगा एकदिन
इकरार -ऐ- जुल्म करकर
क्यू न करू तारीफ़ मैं उनकी
गर किया है फैसला कारगर
बढ़ रही कुछ ताकत दुनियामे
बढ़ रहा भारत उंचायियोपर
होता गर हर फैसला ऐसेही
दिखती तस्वीर कुछ बदलकर
साठ सालोसे हताश मेरा दिल
सुकून मिला मुझे अब जाकर
सुकून मिला मुझे अब जाकर
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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सुन ऐ नारी .........
तकलीफे तो आती जाती
लढती रहे दिन राती
करे लाख जुलम ये दुनिया
फिरती लाज बचाती
इंसानी जंगलके भेड़िये
तुझको नोच खायेंगे
हर कदम रोक राहोमें
तुझको युही सतायेंगे
गर रुक गई तो फस जायेगी
लिखी तक़दीर ये मानले
क्या करना है या डरना है
डरसे अच्छा मरके देखले
आयेगा ना कोई मदतको
ना होगा कोई साथमें
करले निश्चय सोच समझके
जितनी ताकत तेरे हातमें
नारी बन तू पापही कर गई
तुझको ना कोई आधार
पढे लिखे शरीफभी आयेंगे
गर भर जाये तेरा बाजार
बन झांसी तू चल अकड़के
चाहे आधी रात हो
भूल न जाना अपनी ताकत
चाहे सामने शैतान हो
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अब पीना जरुरी है .........
मुझे मैख़ाना दिखा दो की अब पीना जरुरी है
हुये हासिल ग़मो को अब भुलाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
पीया ना मै अगर मुश्किल कही जीना बन जाये
की अश्कोका भी जरा सा महक जाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
जिंदगी बन गई कातिल ये क़त्ल-आम करने को
जिंदगी को भी सहारा अब दिलवाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
अब ना कोई बची हसरत किसीसे ना शिकायत है
बिखरे रिश्तों को अब फिरसे मिलवाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
की हो जाये यहा मंजूर जिंदगी फिरसे जीने को
की जीने के लिये अब तो फकत पीना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो की अब पीना जरुरी है
हुये हासिल ग़मो को अब भुलाना जरुरी है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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इल्तजा .........
तेरे लबोकी गुलाबी रंगत
हसीं मोहोब्बतकी संगत
सनम तेरे चाहतके दमसे
आजभी है जुडा ये बंधन
सोचता हु गर तू ना होती
जिंदगी खुशनुमा ना होती
तेरे चाहतसे बंधी जिंदगी
चाहतकी निशानी ना होती
हु खुशनसीब पाकर तुझे
मिला जो ये तोहफा मुझे
बस यही इल्तजा है मेरी
कभी भूल ना जाणा मुझे
दिलकी धडकनमे समाई
हमारे चाहतकि खुमारी
जिंदगीभर तुम्हारा साथ
यही एक आरजु हमारी
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बिटिया .........
मुस्कान तेरी ऐ बिटिया
रखु पलको मे छुपाके
तेरे खुशीकी खातीर
ये दुनिया रखु सजाके
तू सपना तुही हकीकत
तुझसेही ये मेरा जहा है
तेरे आनेसे खिला आंगण
तुने बुना खुशीका समा है
ना चाहु चिराग घरका
दिया तो तुही जलायेगी
लडकी होकर तू गुडीया
मेरे सम्मानको बढायेगी
डोली तेरी हसके सजाउंगी
तू ससुरालको महकायेगी
बेटी मुझे यकीन है तुझपर
तू मेरा सर नही झुकायेगी
आंखे नम होगी शादिसे
तेरी बिदाई देखी न जायेगी
बिदा कर तुझे सजन घर
हमेशाही तू याद आयेगी
हमेशाही तू याद आयेगी
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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चाहत .........
ताउम्र बस तुम्हे चाहने की चाहत है
सातो जनम साथ तेरा पाने की चाहत है
गर खुदा है जन्नत मे बैठा कही पर
उससे तुम्हे मेरी मांगने की चाहत है
हुस्न का दीवाना तेरी रूह बन जाऊँ
कशिश मे खुदको लुटाने की चाहत है
दूरिया जो लिखी हम दोनो के दरमियां
हरएक दुरीयो को मिटाने की चाहत है
तुझे खबर कहाँ हाल-दिल ऐ हसीं
बयाँ एक बार बस करने की चाहत हैं
मुकद्दर बदलकर तू होगी एक दिन मेरी
किस्मत की लकीरों में लिखने की चाहत हैं
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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हो गया सवेरा .........
स्वच्छ हो ये भारत मेरा दूर हो अंधियारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा
एक पेड नितदिन लगाओ
भारत मे हरियाली लाओ
गंदगी को दूर भगाकर
भारत को स्वच्छ बनाओ
स्वच्छ हो ये भारत मेरा दूर हो गंध सारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा
कुडा कर्कट सही से फेंको
स्वच्छताप्रेमी जाणलो
निश्चय कर स्वच्छता का
गंदगी मनसे निकालो
स्वच्छ हो ये भारत मेरा दूर हो मोह सारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा
क्या लेकर के आये थे तुम क्या लेकर है जाणा
सबको इस काली मिट्टी के गोद मे कल है सोना
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अब्दुल कलाम .........
देखा था उसने एक सपना
महाशक्ती बने देश अपना
देखो छोड गया वो दुनीया
जागते जो देखता था सपना
नितदिन कर्म करता रहा
उमर भलेही बढती गई
जीनेकी राह दिखाता रहा
उम्मिदे जराभी कमना हुई
कर्म से लिखा अस्तित्व जिसने
एक आईना था सच्चाई का
वो अब्दुल कलाम था अपना
नाम मिला जिसे मिसाईल का
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बेज़ुबाँ ईश्क .........
बेज़ुबाँ ईश्क मेरा बेजुबाँ रह गया
सपनों का हर लम्हा अधूरा सा है
तेरी उम्मीदों को आँखों में बसायाँ
आँसुओं का समँदर सूखा सा है
दुवाओँ में बहाये अश्क जो हमने
असर उन दुवा का नागवारा सा है
तनहा सी होकर जिंदगी जीने लगी
मोहोब्बत का हमपर दर्द-साया सा है
ना कर सके वफ़ा वो बेवफा भी न थे
इकरार-मोहोब्बत हम कर न सके
है जली आग दिल में जुदाई की यारों
आजतक आग वो बुझा न सके
जो लिख्खी गई है बेजुबाँ ये कहाणी
हात से वो लकीरे मिटती नहीं है
मानो लगी है आदत सी आँसुओ को
आँखों से ये आदत छूटती नहीं है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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किमत .........
तू कहती रही वो तेरी दास्ताँ
सुननेवाला मगर कोई न था
तेरी तकलीफे थी दर्दों भरी
जाये समझ ऐसा कोई न था
वो रुसवा हुई जब तेरी आबरू
किसी को भी फर्क पड़ना न था
तू मरती रही अकेली सडकपर
किसी को भी तुझसे मतलब न था
तू करती रही मिन्नते बार बार
भीड़ मे हो खड़ा कोई इंसाँ न था
तू रोती रही भटकी यहाँ से वहा
पोंछलें तेरे आँसू ऐसा कोई न था
उठा है जो परदा तेरे जिस्म से
आवाज तेरी कोई उठायेगा क्या
नसीब ही तेरा गरीबी मे पैदा हुवाँ
जान की आखीर तेरे किमत ही क्या
नसीब ही तेरा गरीबी मे पैदा हुवाँ
जान की आखीर तेरे किमत ही क्या
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटी .........
दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटी
तड़प तड़पकर माँ को पुकारे
माँ मै तुझसे प्यार हु करती
जैसे हो माँ मुझे बचाले
माँ जो आई देख वो मंजर
होश तो जैसे उसने गवायें
नम आँखोंसे कोशिश माँ की
बेटी को वो गले लगाये
टुकडे वो माँ कैसे समेटे
मदत मांगते वो गिड़गिड़ायें
लोग खड़े थे जैसे तमाशा
कोई मदत को आगे न आये
बनी नपुंसक विचारधारा
वीडियो का था एक नजारा
मानवता का नाम न लेना
मासूम को ना मिला सहारा
आधा घंटा तड़प तड़पकर
बेटी ने जो प्राण है छोड़े
देख तमाशा इस जीवन का
माँ ने अपने हात है जोड़े
देख तमाशा इस जीवन का
माँ ने अपने हात है जोड़े
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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न कर सकी तू वफ़ा .........
न कर सकी तू वफ़ा ऐ सनम
मुझे तुझसे कोई गिला भी नहीं
न कर सकी तू वफ़ा ...............
चाह क्या थी तेरी ऐ हमदम
कभी जुस्तजू तो की होती
हम तो थे राहो में खड़े हरदम
कोशिशें ढूंढने की की होती
न कर सकी तू वफ़ा ...............
ख्वाहिशें जो भी थी मेरे दिलमें
जो भी थी कहती थी मेरी आँखे
जी रही थी लेकर दर्द सिनेमें
मुझसे क्यों कह न सकीं तेरी आँखे
न कर सकी तू वफ़ा ...............
अब जो तू सामने नहीं है सनम
दिल यु मायूस हो जाता है
चाह ये है तुम मिलो अगले जनम
बिन तुम्हारे जिया न जाता है
न कर सकी तू वफ़ा ऐ सनम
मुझे तुझसे कोई गिला भी नहीं
न कर सकी तू वफ़ा ...............
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बहोत छोटी है उम्र जिंदगी की .........
बहोत छोटी है उम्र जिंदगी की
कशमकश भरी राह जिंदगी की
भर आती है आँखे याद कर कुछ
छूट जाती है सौगात जिंदगी की
है तो मानो सारी खुशिया जिंदगी में
है कमी सी खल रही क्यों जिंदगी की
चल रही है रात दिन नित जिंदगी ये
उड़ रहा मन ओढ़ चुनरी जिंदगी की
रिश्ते नाते प्यार नफ्रत है बहोत से
प्यास फिर मिटती नहीं क्यों जिंदगी की
है अधूरी बात कोई छल रही जो
सोचता हु चाह क्या है जिंदगी की
अब तो बस उम्मीद छोड़े चल रहा हु
हो रहा जो मर्जी मानो जिंदगी की
ना शिकायत ना गिला अब है किसीसे
मैं भी चलदू राह पकडे जिंदगी की
मैं भी चलदू राह पकडे जिंदगी की
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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धड़कनों को तेरे संभाला तो होता .........
गम मनाऊ तो कैसे रिश्ता तो होता
चल सके साथ मेरे फरिश्ता तो होता
गया छोड़ दुनिया वो मर्जी थी तेरी
मोहोब्बत का मेरे यूँ सौदा न होता
बात ऐसी नहीं भूल जाऊ मै सब कुछ
याद करने को तू अपना तो होता
क्या राज जाने दफ़्न दिल में रख्खे थे
एक बार मुझसे कह दिया तो होता
गम नहीं मुझे और गम भी है शायद
हाल दिल का तेरे दिखाया तो होता
तू दूर था सही मै अंजान हो बैठा
दूर से सही रिश्ता निभाया तो होता
जब पता चला तू चल दिया अकेले
याद कर के मुझे तूने देखा तो होता
मै दुश्मन नहीं था याद भी ना आई
धड़कनों को तेरे संभाला तो होता
मै दुश्मन नहीं था याद भी ना आई
धड़कनों को तेरे संभाला तो होता
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मेरी भी एहतियात होगी .........
पहले जो सच की खबर होती
न यु बेवजह जुरूरत होती
कितना वक्त बिता उलझनों में
न यु अंजान हुकूमत होती
चलो अच्छा है जो हुवा सो हुवा
अब न कोई हिमाकत होगी
अपने ही सपने मानो थेे बेवफा
अब न कोई इबादत होगी
रह गई जो बाते वो दफ्न कर दी
उजालों से नई जमानत होगी
क्या हुवा गर ठहरे डूबने से पहले
अनचाही कोई इजाजत होगी
अब जो मिला है साथ किसीका
वक्त की ये शराफत होगी
यकीनन नहीं यकीं मुझे तुझपर
कल फिर नई कयामत होगी
लगता तो है कभी कभी की तू है
मेरी नफरत तेरी उक़ूबत होगी
कर जो चाहे यकीनन तू बड़ा है
हर पल मेरी भी एहतियात होगी
हर पल मेरी भी एहतियात होगी
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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कोशिश तो बहोत की .........
कोशिश तो की
न की, ऐसा कुछ नही
मिन्नत भी की
न की, ऐसा कुछ नही
आरजुयें रोती रही
अपने ही कंधो पर सर रखकर
फ़रियाद भी की
न की, ऐसा कुछ नही
अंजान थी डगर
जाने क्यू चल पड़ी हसरते
जिद भी की
न की, ऐसा कुछ नही
मानली हार दिलने
अपने ही अधूरे सवालों से
कोशिश तो बहोत की
न की, ऐसा कुछ भी नही
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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उनका क्या कर पायेंगे .........
गद्दारों को पकड़ पकड़ कर
कैसे मार गिरायेंगे
छुपकर बैठे दामन में माँ के
उनका क्या कर पायेंगे
खैर वो तो दुश्मन, दुश्मन ठैरे
आतंकवाद बढायेंगे
अपने भाई जो भटक गये
उनका क्या कर पायेंगे
मिट्टी अपनी खून भी अपना
किसका लहुँ बहायेंगे
स्वार्थ की खातिर खुदको बेचें
उनका क्या कर पायेंगे
ऊँच नींच का पगड़ा बहका
समतल क्या कर पायेंगे
जाती धर्म पर लढ रहें जो
उनका क्या कर पायेंगे
कातिल अपने क़त्ल भी अपना
किस को दोष लगायेंगे
अपने हि कुत्ते पागल हो बैठे
उनका क्या कर पायेंगे
हम उनका क्या कर पायेंगे
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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है बधाई ईद आई .........
है बधाई है बधाई ईद आई ईद आई
है बधाई ईद आई
दिली बधाई है मेरे भाई
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई
जश्न-ईद का साथ मनाये
जात धर्म सब छोड़ भाई
है बधाई है बधाई ईद आई
क्या लेकर आई ये दुनियाँ
धर्म जात किसने बनाई
यार पढ़ले एकबार तू गीता
क़ुरान मैंने दिल में बसाई
है बधाई है बधाई ईद आई
गुरुद्वारे में सजदा करू मैं
चर्च में बाईबल अपनाई
खून तो देखो एक जैसा है
रंग रंग में क्यू है बुराई
है बधाई है बधाई ईद आई
चंद मतलबी चाहे झुकाना
झुकी कभी ना है सच्चाई
अमन शांती के हम रखवाले
दुश्मनों की शामत है आई
है बधाई है बधाई ईद आई
नफरत की औकात क्या है
आज प्यार की रुत है आई
हम सब यारो मिल कर गाये
ईद आई ईद आई ईद आई
है बधाई है बधाई ईद आई ईद आई
है बधाई ईद आई
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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औकात ये है अपनी .........
तू मंदिर मैं मस्ज़िद
तू चर्च मैं विहार
तू ये तू वो मैं ये मैं वो
धर्म का बाजार
औकात ये है अपनी .........
सिखा अब तलक जो
बड़ो ने ही पढ़ाई है
तीव्र गती से अब
बढ़ रही तबाही है
औकात ये है अपनी .........
अच्छा न बोले कोई
हर कोई लाचार है
मिडिया भी क्या देखे
खबरों का बाजार है
औकात ये है अपनी .........
राजनीती स्वार्थ भरी ये
नेतागन बातूने सारे
बलगलाते गरीब को
गरीब करे क्या बेचारे
औकात ये है अपनी .........
गरीब की नौटंकी देखो
सुविधाये पचती नहीं है
चाय के टपरी पर बाते
किस्मत क्यू बनती नही है
औकात ये है अपनी .........
लाज शरम सब छोड़ गई
कपड़ो की परिभाषा
बलात्कार का ट्रेंड चला है
निर्भया कभी ये आशा
औकात ये है अपनी .........
हर कोई बातों में लगा है
सच्चाई को मोल नही है
झूठ की तेज धार है यारो
सच की तो औकात नही है
औकात ये है अपनी .........
खंजर गोली का है जमाना
कलम की धार नही है
देश चला विकास करने
पर पूरा आधार नही है
औकात ये है अपनी .........
बातों का अंबार यहाँ पर
एकता का द्वार नही है
हर तरफ बस मैं ही मैं हूँ
हम का व्यवहार नही है
औकात ये है अपनी .........
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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स्वतंत्रता दिवस .........
बड़े शिद्दत से चंद दिन
हिंदुस्तान याद किया जायेगा
फिर हमेशा की तरह
हिंदुस्तान भुला दिया जायेगा
होली दिवाली की तर्ज पर
स्वतंत्रता दिवस मनाया जायेगा
फिर हमेशा की तरह
अगले साल के लिए छोड़ा जायेगा
बात होगी देश और ईमान की
जर्रे जर्रे में देशप्रेम नजर आयेगा
फिर हमेशा की तरह
मेरा हिंदुस्तान तनहा पाया जायेगा
फिर हमेशा की तरह
मेरा हिंदुस्तान तनहा पाया जायेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अब से एकांत ही .........
अब न कोई ख़्वाब आँखों में होगा
हर दर्द मोहोब्बत का दिल में होगा
हरगिज न होगी जरुरत किसीकी
हर वक्त वो साथी खयालो में होगा
न होगी चाहत कोई न आसमां होगा
हर तरफ धुँवा ख़ाक दिल का होगा
खुद हँसता है दिल अपने मर्ज पर
सोचा न था दर्द इतना बेवफा होगा
चलो अच्छा है तस्सली तो मिल गई
हर सफर जिंदगी का अकेला होगा
अब न उम्मीद किसी हमसफ़र की
हर मंजिल पे खड़ा टूटा सपना होगा
मान गया मैं तक़दीर के फैसले को
अब न कोई फैसला मेरा अपना होगा
जिस डगर ले जाये किस्मत की लकीरें
वही डगर अब से मेरा नया पता होगा
हर कोई चला जब छोड़ कर हात मेरा
फिर क्यू किसी रिश्ते पर ऐतबार होगा
एकांत में जीना सीख लिया 'शशि' ने
अब से एकांत ही मेरा नया नाम होगा
अब से एकांत ही मेरा नया नाम होगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तुमबिन .........
तेरी खूबसूरत अदाओ के सदके
उमर ये बिताऊ तुझे याद करके
तुझे देखकर अब जीना है मुझको
छुपालू तुम्हे अाओ बाहो मे भरके
आँखे नशीली लबो की वो लाली
दीवाना बनाये ये मुस्कान तेरी
तुझे क्या खबर मेरे चाहतो की
तुझे चाहना ही आदत है मेरी
दिलकी तू ख्वाहिश तू अारजू है
तुझे भूलकर अब जीना नही है
कैसे बिताऊ तुमबिन ये जीवन
तुमबिन तो अब यु जीना नही है
तेरी खूबसूरत अदाओ ...........
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मेरी मोहोब्बत .........
माना की हसीं वहम है मोहोब्बत
मगर बड़ी ही बेरहम है मोहोब्बत
चाहते भी क्या थी इस नादाँ दिलकी
वफ़ा में जो पाया जख्म है मोहोब्बत
चाहो भी शिद्दतसे अगर किसीको
पालो अगर तो मरहम है मोहोब्बत
हर एक की तक़दीर में नही होती
हो तो रहमत-ए-करम है मोहोब्बत
हम तो है ही जिंदा उनकी यादों में
हम कब कहे की कम है मोहोब्बत
उनको रुलाने की सोच भी न पाये
दी गई हमारी ये कसम है मोहोब्बत
गर जी सके वो तो शौक से जिले
जुदाई में हासील गम है मोहोब्बत
हम तो करेंगे इंतजार ताउम्र उनका
गर वो आये तो संगम है मोहोब्बत
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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हस पगले तू .........
हस पगले तू हँसले थोडा
सारी उमर है तुझको रोना
ये जीवन का कड़वा सच है
क्या पाना था क्या है खोना
जो सोचेगा होगा कभी ना
जीवन सपनो सा है खिलौना
मानले तू यही है सच्चाई
थोडा हसना और थोडा रोना
रोकर अपने दिल ही दिल में
राज वो कड़वे सारे दबाना
भूलकर अब ये जीवन तेरा
हसते हुये दिन रात बिताना
जीवन क्या है एक छलावा
भावनाओंके खेल है सारे
किस्मत का हात पकड़ चल
टुटता है जब सपने तेरे
रोना धोना मरते दम तक
तुझको है औरो को हसाना
अपने लिए तो हर कोई जीता
औरो के लिए है तुझको जीना
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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दौर .........
अब ना वो दौर रहा हसीं बचपन का
अब फकत आरजुएं जान ले रही है
तब तो लालच था चंद सिक्को का
अब यही लालच पैमाने भर रही है
तब था माँ का आँचल बाप का साया
अब साँसे खुद रूठकर मना रही है
दौर वो भी ख़त्म हो चूका दोस्ती का
अब दोस्ती वो मतलब दिखा रही है
कच्ची केरिया अमरुद की चोरिया
चोरी बदलकर भ्रष्टाचार हो रही है
वक्त ना रहा मासूम इंसानीयत का
लेकर खंजर इंसानियत चल रही है
तब तो थी लढाई खिलोनो के लिये
अब तो लढाई बट्वारे कि हो रही है
तब परसी जाती थी थाली प्यार से
अब हर रिश्तो मे दिवार बंध रही है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तनहा था शशि .........
तनहा था शशि चांदनी मिल गई
अँधेरी रात को रोशनी मिल गई
क्या करू गिला मै कुछ भी नही
रूठी थी सड़क मंजिल मिल गई
फिर न जाने क्यू बढ गये फासले
देखे जो सपने मैने बिखरणे लगे
क्या हुई खता जो रोशनी रूठ गई
हसरते भी दिलके अब हारणे लगे
रूठ गई आरजू खो गया आसमां
जोडे थे रिश्ते कभी अब छुटने लगे
फिर वही दौर लौटा है गुजरा हुवा
पल जो भूल गये थे याद आणे लगे
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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समझौता .........
हक नही मुस्कुराने का
मगर मुस्कुरा लेता है
अपने ही सपनो को वो
ऊजाड़ कर जी लेता है
न कर यकीं इस चेहरे पर
ये चेहरा तो दगा देता है
दिख रहा जो सच नही
सच भी बेवफा होता है
समझ न पाया खुदको
हकीकत या तमाशा है
अब तो दिल भी हार चूका
हकीकत को अपनाना है
शशि का क्या है यारो
जो है बस वही जी रहा है
क्या शिकायत जिंदगी से
समझौता कर लिया है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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सड़क हादसा .........
सड़क हादसो में कोई घायल हो
रास्तो पर पड़ी कोई शिकायत हो
डरने की अब कोई जरुरत नही
बस नेकी दिलकी इनायत हो
अब यहा न कोई दिक्कत होगी
पुलिस की न जबरदस्ती होगी
बेधड़क पोहच जाओ अस्पताल
डॉक्टर की न शिकायत होगी
कोई परचा भी ना जरुरी होगा
डर की न कोई परछाई होगी
कह दिया न्यायालय ने आखिर
मदतगार को तकलीफ ना होगी
किसी का कोई जुलम ना होगा
तेरी हिम्मत को सम्मान मिलेगा
बहुत मर चूकी इंसानियत यारो
अब सड़क पर ना कोई मरेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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ये भी क्या जीना .........
जी लू अब सपनो में मै
हकीकत ना रास आती है
तेरी जुदाई का जख्म उठाकर
मिली कुछ तनहाई है
सोचा न था कुछ यु भी होगा
सपना मेरा तो अधूरा है
प्यार का क्या तोहफा मिला है
हरतरफ बस सन्नाटा है
अब न कोई आरजू दिलमे
चाहत की परछाई बची है
जाने क्या सितम कर गई
मोहोब्बत कि जुदाई है
दिल का दर्द सहा न जाए
किस्मत कि रूसवाई है
तुम रूठी तो रूठी दुनिया
तुम्हारी बस परछाई है
छलनी होकर रह गया सीना
ये जीना कैसा जीना है
तुझसे बिछड़कर मिट गया हू
अब तो साँसे गिनना है
अब तो बस साँसे है गिनना
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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तू छोड़ दे तेरी अधूरी मोहोब्बत .........
तू छोड़ दे तेरी अधूरी मोहोब्बत
मै मेरी मोहोब्बत युही निभाता हु
बेवफाईको तेरे वफ़ा जानकार मै
हसकर गमको गले से लगाता हु
गुजरे जमाने जो संगतमें तेरे
लम्होंको सारे दिलमे बसाता हु
छूटी अधूरी मंजिल जो मेरी
मंजिलको मेरे मै भूल जाता हु
फ़िक्र न कर तू मेरे चाहतो की
चाहत को मेरे दिलमे दबाता हु
भुलादे यकिनन मोहोब्बतको मेरे
यादो में तेरे जिंदगी बिताता हु
नही फासले कोई दरमियाँ हमारे
फासलोंको सारे मै हि मिटाता हु
तुझे भूलना शायद हो जाये मुश्किल
तुझे ही मै अपनी जिंदगी बनाता हु
तुझे ही मै अपनी जिंदगी बनाता हु
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अभी बाकी है .........
क्या हुवा गर टूट गया बिखरना तेरा बाकी है
डालीसे थोडा दूर भले खुशबु अभी बाकी है
महकने दे औरोको तेरे नामसे चोटही खानी है
थक जाये गर अभीसे ऐसे जिंदगानी बाकी है
दो अनजान लोगोको तेरी चमक मिलायेगी
मदतसे तेरी पगले दिल और धड़कने बाकी है
छोड़ न फर्ज तू ऐसे लिख्खे तेरे इस तक़दीर का
देख मेरे दोस्त तेरा मुरझाना अभीभी बाकी है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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जमाने की तुझे जरूरत नही है .........
कुछ देखले खुदको बदलकर
जाने मगर तू सोचता क्या है
जिम्मेदारी क्या होनी चाहिये
जाने मगर तू करता क्या है
भूल बैठा तू सोचने की ताकत
बस किसी और का जी रहा है
सारा सच है सामने ही मगर
खुदसेही भागता फिर रहा है
दोष देता है हर किसीको मगर
अपना गिरेबां झांकता नही है
हर वक्त लगा कोसने औरोको
अपनी खामिया धूंडता नही है
क्या करेगा बेनाम जिकर ऐसे
जब तेरा कोई अफ़साना नही है
खुदकी नजरो से उठ जरासा
जमानेकी तुझे जरूरत नही है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मकरसंक्रांती .........
कटी पतंग पकडो पकडो
सडक सडक भागो दौडो
देख संभलकर गाडी आई
पतंग से ना जानको तोलो
मीठा मीठा गुड मिलाकर
तिल्ली के जो लड्डू बनाये
मम्मी को तुम थँक्स बोलो
देखो क्या पकवान बनाये
खालो खेलो मस्ती करलो
आज दिनभर पतंग उडाये
सभी दोस्त मिल एकजगह
मकरसंक्रांती पर्व मनाये
पतंग उडाये और लड्डू खाये
दौडे भागे और मौज मनाये
किसीको ना तकलीफ देकर
प्यारसे सब त्योहार मनाये
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मै भी न करू तकरिरे .........
मै भी न करू तकरिरे खुदा ये क्या सितम है
ये तो पैमाने लिखें थे बदनाम तकदिर के
कुछ ठहरी हुई दास्ता मै बढ़ रहा हु मगर
ये अफसाने लिखें थे मेरे कुछ उम्मीद के
शौक से मुस्कुराईये हाल-ए-दिल परेशा
जख्म दिलपर दिखते तुटे उन्ही सपनो के
मिलेगा जहां मुकम्मल कोशिश है रात दिन
हुवा बरबाद अब तक पल थे वो कमजोरी के
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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आतंकवादी बन जाऊंगा .........
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
आतंकवादी बन पाकिस्तान घूस जाऊंगा
घुट घुट जिना है जिनको मै जी न पाऊंगा
देशकि खातीर कुछ दुश्मन मार गिराऊंगा
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
डर डर मरनेसे अच्छा चैनकी नींद पाऊंगा
देश के दुश्मनको अच्छा सबक सिखाऊंगा
आतंकवादी बन मै गुंडागर्दी कर जाऊंगा
लोग चाहे जो कहे मै अपना गीत गाऊंगा
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
सरकार कब जाने क्या फैसला सुनायेगी
देशहित कि खातीर अपना खून बहाऊंगा
इतना मै कमजोर नही देखता रह जाऊंगा
जो छेडेगा मेरे वतनको उसको मै मिटाऊंगा
सोचता हु मै भी आतंकवादी बन जाऊंगा
आतंकवादी बन पाकिस्तान घूस जाऊंगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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चाहत ये जो है .........
इतनी भी चाहत न कर कि आफत हो जाये
सारी दुनियासे तेरी खातीर बगावत हो जाये
बस रख अपने दिलके किसी कोनेमे बसाकर
कही चाहत मे मेरा प्यार शापित हो जाये
डर लगता है अक्सर तुझे खो न दु मै कही
शायद यही चाहत मेरी ईबादत हो जाये
देख न पाऊंगा होते तुझे रूक्सत डोलीमे
यही चाहत मेरे मरने का कारण हो जाये
चाहता तो हु मै भी तुझे बेइंतहा ऐ सनम
डरता हु इस संगतकी मुझे आदत हो जाये
हा जी न पाऊंगा यकिनन मै तेरे बिन
नजदीकियों के बाद जुदा किस्मत हो जाये
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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उम्मीदे .........
दर्द का साथ मै भी निभाता चला गया
हसते रोते खुद राह दिखाता चला गया
करवटे बदली जब मैने रातके सायेमे
मै सपनो का घरोंदा बनाता चला गया
कुछ तुटे कुछ जुड़े कुछ अफ़साने बने
सपनोको ख्वाहिशोसे सजाता चला गया
देखी आईने मे जब हकीकत-ए-जिंदगी
यकीनसे जुडी उम्मीदे जगाता चला गया
उम्मीदे आती रही जमानेके पैरो तले
उन्ही उम्मीदो को फिर चलाता चला गया
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मै इंसान बदनाम .........
क्या हिंदु क्या मुसलमान
बिकने लगा सबका ईमान
हमतो कहते है लटका दो
क्यू छूट गया यु सलमान
क्या हिन्दु क्या मुसलमान
स्वार्थी हो रहा है इंसान
हमतो कहते है लटका दो
क्यू पल रहा है आसाराम
क्या हिन्दु क्या मुसलमान
पैसोका है सारा घमासान
हमतो कहते है लटका दो
क्यू हो रहा हु मै बदनाम
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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जिंदगी एक कश्ती .........
कुछ वक्त के सितमसेे हम सिहरसे गये
कुछ यादो मे उनके हम बिखरसे गये
जा धुंड ला पल जो बीते उनके सायेमें
जो देखे थे मैंने सपने सारे तुटसे गये
मौसम था खुशनुमा थी बहारसी सजी
उसी बहार में जिन्दगीके पन्ने झळसे गये
तुटा हुवा है शीशा आजभी उस घरका
जिंदगी की राहो मे हम यु भटकसे गये
कागज़ की कश्ती कुछ डूबी इस तरह
कभी पास थे किनारे अब वो छुटसे गये
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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इंसानियत भूलाने मे .........
लोग कहते है
लोग कहते है नर्क बुरा है
वहा दर्द का जलजला है
मै कहता हु
मै कहता हु नर्क क्या है
यहा जिंदगी बुरी बला है
रोज नये तमाशे
रोज नये तमाशे इंसानके
झगडे देखलो घर घरके
इंसानही काटता
इंसानही काटता इंसानको
जिंदगी सायेमे खौफके
हर कदम दगा
हर कदम दगा देती संगत
यकीन करे भी तो किसका
अपनेही छोडते है
अपनेही छोडते है दर्द मे साथ
ये तो नही संस्कार संसारका
देखा न कभी
देखा न कभी नर्क किसीने
है ऐतराज वहा सबको जानेमे
इंसानको कहा
इंसानको कहा लगता है डर
आज कल इंसानियत भूलानेमे
इंसानियत भूलानेमे
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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मुकम्मल जहां .........
कुछ वक्त के लपेटो मे लिपटे
कुछ लम्हो का सन्नाटा था
उम्रभर ख्वाहीशो मेही सिमटे
कुछ किस्मत का तकाजा था
करते थे आरजू मिले हसीन पल
किसी पल का सहारा न था
हसरत तो थी आसमान छुनेकी
वो भी आसमान धुंदलासा था
है उम्मिदे अबभी जागी जागी
हर वो सपना अधुरासा था
यकिनन मुकम्मल होता जहां
पर मुकम्मल जमाना न था
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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हाल क्या है जनाब का .........
लोकपाल है या जोकपाल
कोण ठहरायेगा
क्या कर रही दिल्ली सरकार
कोई समझायेगा
बंद हो रही आधी गाडीया
मौसम सुधर जायेगा
हर वक्त एक नया झमेला
ऐसे काम हो पायेगा
करले काम जनाब-ए-आला
तकदीर बदल पायेगा
मासूम जनताकी कुछ उम्मिदे
क्या पुरी भी कर पायेगा
इनकेही दोस्त बन गये दुश्मन
कारण कोई बतायेगा
बस उछल रहे बंदर यहापर
दिलवाला सुधर जायेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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जैसी करणी वैसी भरणी .........
कुदरत कि ये कैसी इंतहा है
दुनिया धीरे धीरे मिट रही है
बेकसूर चेहरो कि बेबसी कैसी
मेरा गुनाह धरती भुगत रही है
बडो कि थी शुरुवात यकिनन
मै खुनी हात रंगाता चला गया
आखिर मेरी किस्मत का लिख्खा
अंजाने दुनिया मिटाते चला गया
डूबने लगा मेरे खुशियो का घर
क्या छोटे बडे क्या नर नारी है
अफसोस तो होता है अब मगर
मैने हि कुदरत को सताया है
देख नजारा नम होती है आंखे
पाणी पाणीसी जिंदगी हो रही है
क्या सोच कि थी बरबादी मैने
मेरीही कश्ती सागर मे खो रही है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बता दोष किसका ? .........
तुनेही मिलाई हा मे हा
और झांसा दिया उसने
गलती करती रही तुही
बलात्कार किया उसने
बता दोष किसका ?
जब तलक थी महबुबा
हर सितम प्यारे उसके
अब लगाती इल्जाम
पडणे लगे ताने जमाने
बता दोष किसका ?
तुझे भी तो थी चाहत
उसकेही पास जानेकी
शादी से पहलेही
इज्जत अपनी लुटानेकी
बता दोष किसका ?
क्यू देती दोष उसको
मर्यादा तुने लांघी है
तेरे ही करम है लडकी
नारी लाज तुने बांटी है
बता दोष किसका ?
जब कर लिये पाप तुने
दुखडा किसे सुनाती है
किस्मत ये लिख्खी तुने
रपट उसकी लीखाती है
बता दोष किसका ?
तू हो रही थी बरबाद
तब क्या तू नादान थी
अब हो रही परवाह
क्या यही तेरी जिंदगी थी
बता दोष किसका ?
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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दावत - ए - जश्न .........
जन्मदिन गरीबका जाणे कोण मनायेगा
आंगण रोशनिसे उसका कोण सजायेगा
गरीबको आजभी ना मिलती है रोटी
देखो नेताजीका जन्मदिन मनाया जायेगा
न सडके न पाणी नाही बिजली के तार
रोशनिसे दुल्हेका मंडप सजाया जायेगा
जहा रोज मनती है गोलीयोसे दिवाली
फिर बंदुकोसे अपना दम दिखाया जायेगा
गरीबका न जाणे कब होगा विकास यहा
अमिरो का भरत मिलाप दिखाया जायेगा
एक दुसरोको मिडीया मे दि जाती है गाली
जन्मदिन मे उनकोभी गलेसे लगाया जायेगा
वाहरे किस्मत तुनेभी क्या चाल चलाई है
तेरे रहम से गरीबका पैसा उडाया जायेगा
जिसको मिलना चाहिये वो आजभी भुखा
और यहा दावत - ए- जश्न मनाया जायेगा
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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देख मेरे भाई .........
भूल गई जनता वो जंगल का राज
लौट आये फिरसे नितीशे कुमार
देखी यहा सबने जनता कि चतुराई
बाहरी छोड बिहारीसे प्रीत लगाई
करी तो कोशिश बाहरीनेभी क्या खूब
फिरभी न खिल पाया कमल का फुल
यही तो है किस्मत जनताकी हुजूर
गधे न पढ पाये अबभी है घोडे चतुर
युही होगी तस्वीर अबभी मुरझाइसी
या दिखाई देगी विकास कि परछाइसी
कर दि एन.डी.ए.कि जोरदार पिटाई
दल दल कि जो महागटबंधन पार्टी बनाई
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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क्यू न करू तारीफ़ .........
ले आयेंगे उसे चौखटपर
वहशी मुजरीम बताकर
सजाभी सुनाई जायेगी
मरहम दिलपे लगाकर
जमाना बीत गया धुंडने
उसे गुनहगार बताकर
वोभी करता रहा सितम
जमाने दहशत फैलाकर
करेंगे कोशिश हुजूर अब
पीठ अपनी थपथपाकर
किया काम तारीफे काबिल
हुजूरेआला पैगाम सुनाकर
तारीफ़ होगी यकिनन जो
रख्खा अफ़साना बनाकर
देशभर होगा माहोल हसीं
करें जश्न दिवाली मनाकर
सरकारने कर दिया काम
अपनी ईमानदारी दिखाकर
अब जजभी करदे यु करम
गुनहगारको फ़ासी चढ़ाकर
बड़ी रोई है ये मेरी आँखे
हकीकत-ऐ- जुल्म देखकर
बड़े दिन गुजर गये शायद
मेरे इस देशको मुस्कुराकर
उम्मीद है अब न होगी वो
मायूसी भारत के चेहरेपर
दाऊदभी आयेगा एकदिन
इकरार -ऐ- जुल्म करकर
क्यू न करू तारीफ़ मैं उनकी
गर किया है फैसला कारगर
बढ़ रही कुछ ताकत दुनियामे
बढ़ रहा भारत उंचायियोपर
होता गर हर फैसला ऐसेही
दिखती तस्वीर कुछ बदलकर
साठ सालोसे हताश मेरा दिल
सुकून मिला मुझे अब जाकर
सुकून मिला मुझे अब जाकर
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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सुन ऐ नारी .........
तकलीफे तो आती जाती
लढती रहे दिन राती
करे लाख जुलम ये दुनिया
फिरती लाज बचाती
इंसानी जंगलके भेड़िये
तुझको नोच खायेंगे
हर कदम रोक राहोमें
तुझको युही सतायेंगे
गर रुक गई तो फस जायेगी
लिखी तक़दीर ये मानले
क्या करना है या डरना है
डरसे अच्छा मरके देखले
आयेगा ना कोई मदतको
ना होगा कोई साथमें
करले निश्चय सोच समझके
जितनी ताकत तेरे हातमें
नारी बन तू पापही कर गई
तुझको ना कोई आधार
पढे लिखे शरीफभी आयेंगे
गर भर जाये तेरा बाजार
बन झांसी तू चल अकड़के
चाहे आधी रात हो
भूल न जाना अपनी ताकत
चाहे सामने शैतान हो
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अब पीना जरुरी है .........
मुझे मैख़ाना दिखा दो की अब पीना जरुरी है
हुये हासिल ग़मो को अब भुलाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
पीया ना मै अगर मुश्किल कही जीना बन जाये
की अश्कोका भी जरा सा महक जाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
जिंदगी बन गई कातिल ये क़त्ल-आम करने को
जिंदगी को भी सहारा अब दिलवाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
अब ना कोई बची हसरत किसीसे ना शिकायत है
बिखरे रिश्तों को अब फिरसे मिलवाना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो…………
की हो जाये यहा मंजूर जिंदगी फिरसे जीने को
की जीने के लिये अब तो फकत पीना जरुरी है
मुझे मैख़ाना दिखा दो की अब पीना जरुरी है
हुये हासिल ग़मो को अब भुलाना जरुरी है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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इल्तजा .........
तेरे लबोकी गुलाबी रंगत
हसीं मोहोब्बतकी संगत
सनम तेरे चाहतके दमसे
आजभी है जुडा ये बंधन
सोचता हु गर तू ना होती
जिंदगी खुशनुमा ना होती
तेरे चाहतसे बंधी जिंदगी
चाहतकी निशानी ना होती
हु खुशनसीब पाकर तुझे
मिला जो ये तोहफा मुझे
बस यही इल्तजा है मेरी
कभी भूल ना जाणा मुझे
दिलकी धडकनमे समाई
हमारे चाहतकि खुमारी
जिंदगीभर तुम्हारा साथ
यही एक आरजु हमारी
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बिटिया .........
मुस्कान तेरी ऐ बिटिया
रखु पलको मे छुपाके
तेरे खुशीकी खातीर
ये दुनिया रखु सजाके
तू सपना तुही हकीकत
तुझसेही ये मेरा जहा है
तेरे आनेसे खिला आंगण
तुने बुना खुशीका समा है
ना चाहु चिराग घरका
दिया तो तुही जलायेगी
लडकी होकर तू गुडीया
मेरे सम्मानको बढायेगी
डोली तेरी हसके सजाउंगी
तू ससुरालको महकायेगी
बेटी मुझे यकीन है तुझपर
तू मेरा सर नही झुकायेगी
आंखे नम होगी शादिसे
तेरी बिदाई देखी न जायेगी
बिदा कर तुझे सजन घर
हमेशाही तू याद आयेगी
हमेशाही तू याद आयेगी
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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चाहत .........
ताउम्र बस तुम्हे चाहने की चाहत है
सातो जनम साथ तेरा पाने की चाहत है
गर खुदा है जन्नत मे बैठा कही पर
उससे तुम्हे मेरी मांगने की चाहत है
हुस्न का दीवाना तेरी रूह बन जाऊँ
कशिश मे खुदको लुटाने की चाहत है
दूरिया जो लिखी हम दोनो के दरमियां
हरएक दुरीयो को मिटाने की चाहत है
तुझे खबर कहाँ हाल-दिल ऐ हसीं
बयाँ एक बार बस करने की चाहत हैं
मुकद्दर बदलकर तू होगी एक दिन मेरी
किस्मत की लकीरों में लिखने की चाहत हैं
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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हो गया सवेरा .........
स्वच्छ हो ये भारत मेरा दूर हो अंधियारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा
एक पेड नितदिन लगाओ
भारत मे हरियाली लाओ
गंदगी को दूर भगाकर
भारत को स्वच्छ बनाओ
स्वच्छ हो ये भारत मेरा दूर हो गंध सारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा
कुडा कर्कट सही से फेंको
स्वच्छताप्रेमी जाणलो
निश्चय कर स्वच्छता का
गंदगी मनसे निकालो
स्वच्छ हो ये भारत मेरा दूर हो मोह सारा
जागो भारत जागो देखो हो गया सवेरा
क्या लेकर के आये थे तुम क्या लेकर है जाणा
सबको इस काली मिट्टी के गोद मे कल है सोना
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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अब्दुल कलाम .........
देखा था उसने एक सपना
महाशक्ती बने देश अपना
देखो छोड गया वो दुनीया
जागते जो देखता था सपना
नितदिन कर्म करता रहा
उमर भलेही बढती गई
जीनेकी राह दिखाता रहा
उम्मिदे जराभी कमना हुई
कर्म से लिखा अस्तित्व जिसने
एक आईना था सच्चाई का
वो अब्दुल कलाम था अपना
नाम मिला जिसे मिसाईल का
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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बेज़ुबाँ ईश्क .........
बेज़ुबाँ ईश्क मेरा बेजुबाँ रह गया
सपनों का हर लम्हा अधूरा सा है
तेरी उम्मीदों को आँखों में बसायाँ
आँसुओं का समँदर सूखा सा है
दुवाओँ में बहाये अश्क जो हमने
असर उन दुवा का नागवारा सा है
तनहा सी होकर जिंदगी जीने लगी
मोहोब्बत का हमपर दर्द-साया सा है
ना कर सके वफ़ा वो बेवफा भी न थे
इकरार-मोहोब्बत हम कर न सके
है जली आग दिल में जुदाई की यारों
आजतक आग वो बुझा न सके
जो लिख्खी गई है बेजुबाँ ये कहाणी
हात से वो लकीरे मिटती नहीं है
मानो लगी है आदत सी आँसुओ को
आँखों से ये आदत छूटती नहीं है
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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किमत .........
तू कहती रही वो तेरी दास्ताँ
सुननेवाला मगर कोई न था
तेरी तकलीफे थी दर्दों भरी
जाये समझ ऐसा कोई न था
वो रुसवा हुई जब तेरी आबरू
किसी को भी फर्क पड़ना न था
तू मरती रही अकेली सडकपर
किसी को भी तुझसे मतलब न था
तू करती रही मिन्नते बार बार
भीड़ मे हो खड़ा कोई इंसाँ न था
तू रोती रही भटकी यहाँ से वहा
पोंछलें तेरे आँसू ऐसा कोई न था
उठा है जो परदा तेरे जिस्म से
आवाज तेरी कोई उठायेगा क्या
नसीब ही तेरा गरीबी मे पैदा हुवाँ
जान की आखीर तेरे किमत ही क्या
नसीब ही तेरा गरीबी मे पैदा हुवाँ
जान की आखीर तेरे किमत ही क्या
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✒ शशिकांत शांडिले, नागपूर
भ्रमनध्वनी - ९९७५९९५४५०
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